अवैध कॉलोनी माधव रेसीडेंसी और सिद्धालय पर कलेक्टर दिलीप यादव ने दिया था एफआईआर का आदेश, पिछले दरवाजे से विज्ञप्ति निकालकर बिना सुने ही कर दी निरस्त
मन्दसौर। वर्ष 2021-22 में गरोठ कस्बे में दो कॉलोनियों को काटने की शुरूआत हुई थी। दोनो कॉलोनियां अवैध थी तथा कॉलोनी काटने वाले लोगो ने जनता को हथेली पर हाथी दिखाकर मोटे भाव मे प्लाट बेचने की योजना भी बना ली थी।
प्लाट बिकने शुरू ही हुए थे कि जागरूक पत्रकार एवं अन्य लोगो ने इसकी शिकायत गरोठ के तत्कालीन एसडीएम आरपी वर्मा को कर दी। एसडीएम ने जाँच दल का गठन कर दोनों कॉलोनियों की जांच करवाई जिसमें अवैध कॉलोनी काटना पाया गया। जांच रिपोर्ट ने कॉलोनियों में सड़क, बाउंड्रीवाल का निर्माण हो जाने का उल्लेख किया इसके साथ ही सिद्धालय कॉलोनी में तो सरकारी जमीन भी निकाली थी जिस पर बाद में कॉलोनाइजरों ने खुद ही अतिक्रमण हटाया था।
दोनों अवैध कॉलोनियों का प्रकरण न्यायालय एसडीएम गरोठ में चलता रहा उसके बाद आगे की कार्रवाई के लिए कलेक्टर न्यायालय मन्दसौर में प्रकरण भेजा गया।
कलेक्टर कार्यालय में चलते प्रकरण में माधव रेसीडेंसी के राहुल पाटीदार और दीपा पाटीदार ने नगर तथा ग्राम निवेश नीमच से पिछले दरवाजे से अनुमति लेकर प्रकरण में पेश कर कार्रवाई से बचने की कोशिश की गई। इसका उल्लेख कलेक्टर दिलीप कुमार यादव के द्वारा दिए गए आदेश में भी है।
कलेक्टर ने दोनों अवैध कॉलोनियों काटने वालो के विरूद्ध एफआईआर दर्ज करवाने के आदेश दिए थे जिसके बाद थाना पुलिस गरोठ ने माधव रेसीडेंसी और सिद्धालय के कर्ताधर्ताओं के विरूद्ध प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू की। अभी तक ये मामला न्यायालय में प्रचलित है।
इसके अलावा अवैध कॉलोनी माधव रेसीडेंसी में भेरूलाल पाटीदार नामक व्यक्ति ने भी राहुल और दीपा पाटीदार के विरूद्ध तत्कालीन एसपी सुनील पांडे को शिकायत प्रस्तुत की थी कि जिस जमीन पर माधव रेसीडेंसी काटी जा रही है वो दान की हुई जमीन पर बनी हुई है। इस मामले में भी एफआईआर हुई थी जो अभी तक न्यायालय में प्रचलित है।
दूसरी कॉलोनी सिद्धालय में अवैध होने के साथ ही सरकारी जमीन पर कब्जा पाया गया था जिसमे कलेक्टर के आदेश पर एफआईआर हुई थी उसके अलावा जिस जमीन पर कॉलोनी काटी जा रही है उसमें बटांकन फर्द के विवाद को लेकर मामला कमिश्नर न्यायालय में प्रचलित है।
दोनों कॉलोनियों के मामले न्यायालय में प्रचलित है। उसके बाद जून 2024 में कार्यालय कलेक्टर मन्दसौर द्वारा इन्हें 2022 के अधिनियम के तहत वैध करने हेतु दैनिक भास्कर में विज्ञप्ति प्रकाशित करवाई गई। विज्ञप्ति प्रकाशित होने के बाद उसमें 7 आपत्तियां कलेक्टर और एसडीएम कार्यालय में लगी। जिनकी विधिवत सुनवाई होनी थी। किन्तु आपत्तिकर्ता को सूचना दिए बगैर तहसीलदार ने रिपोर्ट एसडीएम गरोठ को पेश कर दी और एसडीएम गरोठ ने कलेक्टर को पत्र लिखकर सातों आपत्तियों को निरस्त करने का पत्र भेज दिया।
एसडीएम कार्यालय से जो पत्र भेजा गया वो पत्र उनके कार्यालय में मौजूद नही है। ये पत्र परियोजना अधिकारी को भेजना बताया। आपत्तिकर्ता पत्रकार योगेश पोरवाल ने जब डूडा अधिकारी से इस पत्र के सम्बंध में सम्पर्क किया तो उन्होंने जो तहसीलदार कार्यालय का प्रकरण बताया उसमें योगेश पोरवाल को उपस्थित होना बताया जबकि योगेश पोरवाल को इस विषय की सूचना आज तक नही मिली। न वो किसी अधिकारी के कार्यालय में इस प्रकरण को लेकर उपस्थित हुए।
तहसीलदार गरोठ के इस आदेश को देखकर ऐसा प्रतीत होता है प्रशासन भूमाफियाओं को लाभ पहुचाने के लिए पिछले दरवाजे से मदद कर रहा है।
जिन कॉलोनियों को लेकर न्यायालय में प्रकरण प्रचलित है उन कॉलोनियों को पिछले दरवाजे से वैध करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी भूमाफियाओं का पूरा पूरा साथ दे रहे है।
नगर तथा ग्राम निवेश द्वारा कॉलोनी विकास की जो अनुज्ञा दी जाती है उसमें स्पष्ट उल्लेख होता है कि अगर कोई न्यायालयीन प्रकरण प्रचलित है तो अनुमति स्वतः शून्य मानी जाएगी। लेकिन यहाँ दोनों कॉलोनियों में कलेक्टर के आदेश पर हुई एफआईआर और जमीन विवाद के प्रकरण न्यायालय में होने के बावजूद तहसीलदार, एसडीएम भूमाफियाओं के साथ कप्टसन्धि कर अवैध को वैध करने का जुगाड़ कर रहे है।
इस मामले में जब परियोजना अधिकारी से आपत्तिकर्ता योगेश पोरवाल ने चर्चा की तो उन्होंने बताया कि इस सम्बंध में अब तक शिकायते प्राप्त हुई है लेकिन कोई न्यायालय का स्थगन नही है। अगर न्यायालय का स्थगन होगा तो हम रोक लगा देंगे। अब ये समझ से परे है कि विवादित होने और प्रकरण न्यायालयों में होने के बावजूद प्रशासन किस स्थगन का आदेश कर रहे है। क्या न्यायालय में प्रकरण होना पर्याप्त नही है? जिन कॉलोनियों में कोई भूखंड नही बिके है, जिसमें किसी का जनहित नही उसमें प्रशासन क्यो रुचि ले रहा है ये भी समझन से परे है।
इस मामले में को जागरूक लोगो द्वारा हाईकोर्ट और लोकायुक्त में भी दर्ज करवा दिया गया है। इसके बाद किस तरह कॉलोनी को वैध करने की प्रक्रिया की जाती है ये देखने वाला विषय होगा।

Author: Yogesh Porwal
वर्ष 2012 से पत्रकारिता के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय है। राष्ट्रीय समाचार पत्र हमवतन, भोपाल मेट्रो न्यूज, पद्मिनी टाइम्स में जिला संवाददाता, ब्यूरो चीफ व वर्ष 2015 से मन्दसौर से प्रकाशित दशपुर दिशा समाचार पत्र के बतौर सम्पादक कार्यरत, एवं मध्यप्रदेश शासन द्वारा जिला स्तरीय अधिमान्य पत्रकार है। पोरवाल, खोजी पत्रकारिता के लिए चर्चित है तथा खोजी पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित भी किए जा चुके है। योगेश पोरवाल ने इग्नू विश्वविद्यालय दिल्ली एवं स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन, न्यू मीडिया में पीजी डिप्लोमा और मास्टर डिग्री प्राप्त की, इसके अलावा विक्रम विश्वविद्यालय से एलएलबी, एलएलएम और वर्धमान महावीर ओपन विश्वविद्यालय से सायबर कानून में अध्ययन किया है।