उच्च शिक्षा विभाग ने लोकायुक्त जांच में जिसका नाम था उसे कर दिया सेवानिवृत और जिनके खिलाफ शिकायत नहीं थी उनके खिलाफ चलाए रखी जांच और बाद में खत्म कर दी
दशपुर दिशा । योगेश पोरवाल
मंदसौर। मंदसौर में 2017 से पहले हुए छात्रवृत्ति घोटाले की लोकायुक्त शिकायत में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा मुख्य आरोपी को बचाने और अन्य प्राचार्यों को उलझाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस प्रकरण में राजीव गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मंदसौर के तत्कालीन प्राचार्य डॉ. बी.आर. नलवाया का नाम प्रमुखता से शामिल था, लेकिन उच्च शिक्षा विभाग ने उन्हें न केवल बचाया, बल्कि अन्य दो प्राचार्यों को अनावश्यक रूप से जांच में उलझा दिया।

लोकायुक्त शिकायत और जांच की शुरुआत
2017 से पहले मंदसौर में हुए छात्रवृत्ति फर्जीवाड़े की शिकायत लोकायुक्त में दर्ज की गई थी। इसमें आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला संयोजक, लीड कॉलेज प्राचार्य और निजी कॉलेज संचालकों सहित 12 लोगों के खिलाफ जांच शुरू हुई। शिकायत में डॉ. बी.आर. नलवाया का नाम स्पष्ट था, जो उस समय लीड कॉलेज के प्राचार्य और छात्रवृत्ति प्रकरणों के नोडल अधिकारी थे। तत्कालीन कलेक्टर गौतम सिंह ने भी उच्च शिक्षा विभाग को डॉ. नलवाया के खिलाफ जांच के लिए पत्र लिखा था।
मुख्य आरोपी को बचाने की साजिश
लोकायुक्त और कलेक्टर के पत्र के बावजूद, उच्च शिक्षा विभाग ने डॉ. नलवाया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बजाय, गरोठ शासकीय कॉलेज के प्राचार्य नंदकिशोर धनोतिया और मंदसौर लीड कॉलेज के प्राचार्य डॉ. लक्ष्मीनारायण शर्मा को आरोप-पत्र जारी कर जांच में उलझा दिया गया। सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई मुख्य आरोपी डॉ. नलवाया को बचाने की रणनीति थी।
डॉ. लक्ष्मीनारायण शर्मा ने अपने जवाब में स्पष्ट किया कि वे उस समय कॉलेज में पदस्थ नहीं थे, फिर भी उच्च शिक्षा विभाग ने उन्हें और धनोतिया को जानबूझकर निशाना बनाया। दूसरी ओर, डॉ. नलवाया को न तो आरोप-पत्र जारी किया गया और न ही उनके खिलाफ जांच शुरू की गई।
नो ड्यूज और रिटायरमेंट का खेल
मामले को और जटिल करते हुए, मंदसौर लीड कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य डॉ. दिनेश कुमार गुप्ता ने 07/11/2024 को डॉ. नलवाया को नो ड्यूज सर्टिफिकेट जारी कर दिया, जिसके आधार पर उनकी सेवानिवृत्ति हो गई। यह सर्टिफिकेट तब जारी किया गया, जब डॉ. गुप्ता को छात्रवृत्ति घोटाले और लोकायुक्त जांच प्रकरण की पूरी जानकारी थी।
विभाग का आदेश और जांच का अंत
दिनांक 13/03/2025 को उच्च शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी कर डॉ. लक्ष्मीनारायण शर्मा और नंदकिशोर धनोतिया के खिलाफ चल रही जांच को बिना किसी दंड के समाप्त कर दिया। आदेश में कहा गया कि धनोतिया ने 2016-17 में श्री साइनाथ कॉलेज ऑफ नर्सिंग में नोडल अधिकारी के रूप में कार्य नहीं किया था। हालांकि, इस आदेश में डॉ. नलवाया के खिलाफ कोई उल्लेख नहीं था, जिनका नाम मूल शिकायत में था।

लोकायुक्त को दी गई स्वीकारोक्ति
डॉ. नलवाया ने लोकायुक्त को दिए जवाब में स्वीकार किया था कि उनके कार्यकाल में श्री साइनाथ पैरामेडिकल एवं नर्सिंग कॉलेज के छात्रवृत्ति प्रकरण उनके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा जांच के बाद आदिम जाति कल्याण विभाग को भेजे गए थे। इसके बावजूद, उच्च शिक्षा विभाग ने उन्हें बचाने के लिए पूरा जोर लगा दिया।
शिकायतकर्ता की मांग
शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त को पत्र लिखकर मांग की है कि इस प्रकरण में डॉ. नलवाया, उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों और डॉ. दिनेश कुमार गुप्ता की भूमिका की सूक्ष्मता से जांच की जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि शासन और कॉलेज स्तर पर अधिकारियों ने मिलकर डॉ. नलवाया को गलत तरीके से बचाया और उनकी सेवानिवृत्ति सुनिश्चित की।
यह प्रकरण उच्च शिक्षा विभाग और कॉलेज प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है। लोकायुक्त शिकायत में मुख्य आरोपी को बचाने और अन्य अधिकारियों को अनावश्यक रूप से उलझाने का यह मामला मध्यप्रदेश में प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त से इस मामले की गहन जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
यह कहना है इनका
मेरे विरूद्ध फर्जी तरीके से उच्च शिक्षा विभाग ने जांच चलाई जबकि प्रकरण के समय में मंदसौर कॉलेज में पदस्थ ही नहीं था। अभी भी मेरा पेंशन प्रकरण रुका हुआ है। 11 माह से मै मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हुआ हूं। – डॉ.एल.एन शर्मा पूर्व प्राचार्य राजीव गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मन्दसौर
Author: Dashpur Disha
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