दशपुर दिशा । दीपक सोनी
रतलाम/जावरा। राजनीति तो कई लोग करते है और उंचे पद तक भी पहुंचते है लेकिन कुछ ही नेता होते है जो काजल की कोठरी में बेदाग रहने की कहावत चरितार्थ करने के साथ-साथ अपने दौर और व्यक्तित्व की मिसाल पेश कर जाते है। अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व गृहमंत्री कुंवर भारतसिंह उन चुनिंदा राजनेताओं में से एक थे। वे करीब तीन दशक पहले मंत्री रहे व राजनैतिक धमक बनाई थी लेकिन उस दौर को लोग आज भी याद करते है और भारतसिंह जी के काम का अंदाज कैसा था, मिसाले देते है।
जोशीली आवाज, उंची कद-कांठी और आत्म विश्वास भरा अंदाज पूर्व गृहमंत्री कुंवर भारतसिंह की स्थाई पहचान रही है। वैसे तो वे ८० और ९० के दशक में मंत्री रहे, लेकिन उनसे यदि चार दिन पहले तक भी कोई मिलता था तो लगता था किसी खास शख्सियत से मुलाकात हो रही है। शायद यही भारतसिंह जी का अंदाज था कि उनसे मुलाकात में आत्मीयता के साथ साथ अपनेपन का एहसास भी वे करवा देते थे। तो वहीं अदब के साथ यह स्पष्ट भी हो जाता था कि उनकी एहमियत क्या है।
जावरा निवासी कुंवर भारतसिंह ने राजनीति में आज से करीब ४० साल पहले ही युवा अवस्था में ही वह मुकाम हासिल कर लिया था जिसे हासिल करने के लिए आज भी जिले ही नही प्रदेश के भी कई नेता तरसते है। उनकी राजनीतिक स्पीड को इस बात से ही समझ लीजिए कि वे १९७३ में पार्षद बने, ७४ में मंडी डायरेक्टर, ७८ में युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष व १९८० में विधायक। १९८२ में खेल एवं युवक कल्याण व वन उपमंत्री बन गए। फिर ८३ में गृह राज्य मंत्री रहे। फिर १९८५ के दौर में तो एक तरफ से आधी सरकार ही भारतसिंह के हवाले थी क्योंकि इस दौर मे वे केबिनेट में गृह एवं परिवहन मंत्री के साथ साथ उद्योग, जेल, श्रम, सहकारिता सहित सात विभागों के मुखिया रहे। इस दौर को याद करते हुए उनके कई समर्थक बताते है कि लगभग आधी सरकार चलाने के बावजूद भारतसिंह जी ने कभी भी राजनीतिक सिद्घांत और ईमानदारी को नही छोड़ा। सिंह की काबिलियत को इस बात से भी समझा जा सकता है कि जब उन्हे गृह नगर जावरा की बजाए दूसरे विधानसभा क्षेत्र सीतामउ चुनाव लडने भेज दिया तो वहां भी उन्होने जीतकर दिखाया। वे जावरा के इकलोते ऐसे नेता थे जो सबसे पहले केबिनेट में मंत्री बने। हालांकि उनसे पहले डॉ.कैलाशनाथ काटजू मुख्यमंत्री रहे और बाद में महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा केबिनेट मंत्री, लेकिन इसके अलावा जावरा को कोई मंत्री नही मिला।
आज भी लोग कहते है वह भी एक दौर था
८ जून १९४४ को जन्मे भारतसिंह ने कल ६ दिसंबर को सुबह ७.३० बजे रतलाम में अंतिम सास ली और आज जावरा में उनकी अंतिम विदाई हो रही है। लेकिन इस बीच के करीब 80 वर्ष की जिंदगी देखने वाले भारतसिंह ने राजनीतिक के कई दौर देखे। वे कभी सत्ता में अहम किरदार रहे तो कभी किरदार की सत्ता कायम रखी। फिर शारीरिक परेशानिया, राजनीतिक उतार चढ़ाव और बदलता परिवेश बना रहा लेकिन कुंवर भारतसिंह के अंदाज में कोइ बदलाव नही हुआ। वे जैसे थे और वेसे ही दिखे और वैसे ही रहे। राजनीति चालबाजियों से लेकर भ्रष्ट व्यवस्था तक का भी उन पर कभी कोई असर नही हुआ और शायद इसीलिए वे स्वच्छ राजनीति के पेरोकार रहे। राजनीति में रहकर भी स्वभाव का भोलापन उनमें बरकरार रहा, हालांकि कई लोग उन्हे इसे उनकी कमजोरी भी आंकते रहे।
जानिए जावरा और जिले को उन्होने क्या-क्या दिया
स्व.कुंवर भारतसिंह की राजनीतिक कार्यकाल की उपलब्धियां इतनी कि गिनने बैठी तो समय लगे। वैसे तो प्रदेशभर में कई काम करवाए लेकिन जावरा नगर की बात करें तो प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी बस स्टैंड इन्हीं के प्रयासों की देन है। 24 वीं बटालियन की स्थापना से लेकर जिले के पहले नवोदय स्कूल की स्वीकृति इनके दौर में हुई। 100 फीसदी विद्युतिकरण, दो डीई कार्यालय, आईए पुलिस थाना, 11.28 मिलियन घन मीटर क्षमता के सबसे बड़े रूपनिया जलाशय, कई डेम, जावरा-सीतामऊ रोड, चौपाटी पेयजल टंकी ही नहीं बल्कि शुगरमिल का राष्ट्रीयकरण, मजदूरों का बकाया भुगतान करवाने, ऋण लौटाने में भी महती भूमिका है। वह तो 1990 में चुनाव हार गए वरना जिस इंजीनियरिंग कॉलेज व औद्योगिक विकास की आज मांग हो रही, यह कब के स्थापित हो चुके होते। बल्कि इंजीनियरिंग कॉलेज तो स्वीकृत होकर स्टाफ आ चुका था। जमीन आवंटित हो गई थी।
राजपूत समाज और खेल जगत में भी था दखल
पूर्व गृहमंत्री भारतसिंह का केवल राजनीति में ही नहीं वरन् समुचे राजपूत समाज और खेल जगत में गहरी पेठ रही हैं। सिंह क्षत्रिय महासभा व राजपूत बोर्डिंग के संरक्षक रहे, लगभग धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व खेल संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी रही। वर्ष 1982 में इंटर जोनल व 1987 में प्री-एशिएन बॉस्केटबॉल स्पर्धा व 1988 में आल इंडिया लेवल टेबल टेनिस टूर्नामेंट तक करवाकर जावरा को खेल जगत में नई पहचान दिलाई।

Author: Dashpur Disha
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