कॉपरेटिव सोसायटियों पर नही है सहकारिता विभाग का अंकुश ! आये दिन फरार हो रही सोसायटियां से सबक लेकर जनता को भी होना पड़ेगा जागरूक

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सोसायटी पंजीयन के बाद सहकारिता विभाग को उसके क्रियाकलापों की मॉनिटरिंग करनी चाहिए लेकिन साल में एक बार ऑडिट भी केवल खानापूर्ति के लिए कर दिया जाता

मन्दसौर। आपने देखा होगा पिछले 5-10 वर्षों में मन्दसौर जिले में कई सहकारिता समितियों (कॉपरेटिव सोसायटियों) के रातोंरात फरार होने की घटनाएं सामने आई है। जो सोसायटियां गरीबों के खून पसीने की कमाई को लेकर फरार हुई उनमें से कुछ जिला स्तर व कुछ सम्भाग स्तर से तथा कुछ अन्य राज्यों से आकर यहां बैंकिंग व्यवसाय कर रही थी।
इतनी घटनाएं होने के बावजूद न तो सहकारिता अधिकारियों के कान पर जूं रेंगी और न ही लोगो मे जागरूकता आई, जिसका परिणाम लगातार लोगो को भुगतना पड़ रहा है।
पिछले दिनों मंदसौर की पशुपतिनाथ साख सहकारिता समिति के कर्ताधर्ताओं द्वारा जनता की जमा पूंजी गबन करने का मामला सामने आया। कई लोगो ने पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन दिया की संस्था जमा पूंजी लेकर भाग गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पशुपतिनाथ साख सहकारी संस्था मंदसौर से संचालित होकर सीतामउ, पिपलियामंडी सहित कुल 6 ब्रांच संचालित कर रही थी। सभी जगहों का मिलाकर करोड़ो रूपया लोगो का जमा पूंजी बताई जा रही है। इस पूरे मामले के बाद पुलिस अधीक्षक ने जांच प्रारम्भ करवाई है लेकिन जांच इतनी धीमी गति से चल रही है कि अभी तक सम्बंधितो के विरूद्ध एफआईआर तक दर्ज नही हुई है।

सहकारिता पंजीयक की भूमिका पर उठ रहा सवाल
गली गली में कुकुरमुत्ते की तरह खुलने वाली कॉपरेटिव सोसायटियों को लेकर सहकारिता विभाग ने नियम कायदे, बायलॉज बनाए है लेकिन ये नियम कायदे केवल कागजो में पूरे होकर धरातल पर ध्वस्त दिखाई दे रहे है। जिलेभर में संचालित हो रही कॉपरेटिव सोसायटियों का पंजीयन या तो मन्दसौर उपपंजीयक सहकारिता कार्यालय से हुआ है या उज्जैन सहकारिता कार्यालय से। जिले में विभाग है उसमें अधिकारी, कर्मचारी, ऑडिटर सब मौजूद है उसके बावजूद इस तरह की घटनाएं सामने आना सहकारिता विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े करता है।
जिस हिसाब से लोगो की गाढ़ी कमाई लेकर कॉपरेटिव सोसायटियां फरार हो रही है उस हिसाब से तो लगता है इनके ऊपर किसी की कमान नही है। सहकारिता विभाग केवल पंजीयन करके इन्हें जनता को लूटने के लिए खुले छोड़ देते है। अगर ऐसा नही है तो फिर ऑडिट के समय ऐसी संस्थाओं पर लगाम क्यो नही लगाई जाती है? ये बड़ा सवाल है। जब सहकारिता विभाग के ऑडिटर संस्थाओं का ऑडिट करते है तब उन्हें संस्था के आय व्यय के बारे में सही जानकारी नही होती है अगर होती है तो उन्हें उस पर आय से अधिक ऋण बांटने या मैच्योरिटी पर भुगतान के लिए विभाग दबाव क्यो नही बनाता ?
और विभाग अगर फर्जी ऑडिट कर रहा है तो ऐसे में विभाग के अधिकारी, कर्मचारियों को भी संस्थाओं के साथ पुलिस प्रकरणों में आरोपी बनाया जाना चहिए।

दैनिक जमा योजना, अधिक ब्याज वसूली पर क्यों रोक नही
सहकारिता अधिनियम के अनुसार कॉपरेटिव सोसायटियों को दैनिक जमा योजना चलाने का अधिकार नही है लेकिन उसके बावजूद सभी कॉपरेटिव सोसायटियां दैनिक जमा योजनाएं चलाकर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को इसमें ग्राहक बनाकर उनसे प्रतिदिन एजेंट के माध्यम से राशि जमा करवा रही है। कॉपरेटिव सोसायटियों के टारगेट पर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार होते है जो छोटे छोटे टुकड़ों में अपनी राशि एकत्रित करते है लेकिन ऐसे लोगो के साथ फर्जीवाड़ा हो जाता है और उसके बाद विभाग हाथ खड़े कर देता है।
इसी तरह कॉपरेटिव सोसायटियों द्वारा मोटे ब्याज़ पर ग्राहकों को लोन दिया जाता है जबकि सहकारिता अधिनियम के अनुसार केवल सदस्यों को ही लोन देने का प्रावधान है। कॉपरेटिव सोसायटियां फार्म भरवाकर सदस्य बना लेती है लेकिन उनका कोई रिकॉर्ड विभाग के पास उपलब्ध नही करवाती है, न ही सहकारिता विभाग सोसायटियों से ये पूछता है की आपके पास इतना आय व्यय कहां से हो रहा है। क्या सोसायटी के 11 सदस्य मिलकर करोड़ो का आय व्यय कर सकते है अगर कर रहे है तो ये तो इनकम टैक्स विभाग के लिए जांच का विषय बनता है और अगर ये सोसायटी के सदस्यों का पैसा है तो फिर उनका रिकॉर्ड विभाग के पास उपलब्ध क्यों नही। यानी विभाग केवल पंजीयन करके अपनी जिम्मेदारी से इति श्री कर रहा है।
ये ही कॉपरेटिव सोसायटियां ग्राहकों को जमा पूंजी पर केवल 4 प्रतिशत का लाभ देती है जबकि लोन बांटकर मोटा ब्याज वसूलती है। सहकारिता अधिनियम के अनुसार 9 से 13 प्रतिशत तक ब्याज़ वसूलना ठीक है लेकिन सोसायटियां 28 से 30 प्रतिशत तक ब्याज वसूलकर लोगो का गला काट रही है।
अगर कॉपरेटिव सोसायटी जनता की गाढ़ी कमाई लेकर भाग जाए तो सहकारिता विभाग अपना पल्ला झाड़ लेता है, लेकिन ये ही अगर ग्राहक लोन लेकर जमा नही करता है वो सोसायटी की ओर से सहकारिता विभाग वसूली के लिए इश्तिहार जारी कर देता है। है ना विभाग का दोगलापन !
कई सोसायटियों के द्वारा मोटे ब्याज वसूलने की शिकायते सहकारिता विभाग में धूल खाती रहती है उन पर विभाग कोई कार्रवाई नही करता है। लेकिन सोसायटी की लोन वसूली में विभाग पूरा दम लगा देता है।

लोन के बदले खाली चेक लेकर केस दर्ज करवा देती है सोसायटियां
एक तरफ जब कॉपरेटिव सोसायटी जनता का रूपए हड़पकर फरार होती है तब सहकारिता विभाग खुद का पल्ला झाड़कर जिम्मेदार से दूर भाग जाता है, वही दूसरी तरफ अगर कोई ग्राहक छोटा सा लोन जमा नही करवाता है तो सोसायटी उसको सहकारिता विभाग और कोर्ट के चक्कर लगवा देती है। जमानतदारों को तक विभाग और कोर्ट में पार्टी बनाकर प्रकरण दर्ज करवाया जाता है। जब लोन वसूली की बात आती है तब तो विभाग के पास ग्राहक की जानकारी मौजूद होती है और जब सोसायटी फरार होती है तब विभाग के पास ग्राहकों की जानकारी मौजूद नही होती है ये कैसा दोहरा रवैया है सहकारिता विभाग का ?
मंदसौर कोर्ट में सहकारिता सोसायटियों के लोन सम्बंधित हजारों केस प्रचलित है। लोन के बदले सोसायटियों द्वारा ग्राहकों से 5-6 खाली बैंक चेक रखवा लिए जाते है जब ग्राहक भरने में अक्षम होता है या सोसायटी के साथ ब्याज या अन्य पेनाल्टी को लेकर ग्राहक का कोई विवाद होता है तो सोसायटियों द्वारा चेक बाउंस करवाकर कोर्ट में केस दर्ज करवा दिया जाता है। कुल मिलाकर बात अगर सोसायटियों के पक्ष में है सहकारिता विभाग का द्वारा खुला है लेकिन अगर सोसायटी फरार हो गई तो विभाग हाथ खड़े कर देता है। ग्राहकों के खाली चेक का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग किया जाता है ग्राहकों, जमानतदारों को खाली बैंक चेक के आधार पर कोर्ट केस करने के नाम पर धमकाया जाता है जबकि इस तरह खाली चेक रखवाना गैर कानूनी है। लेकिन नियम सारे ग्राहकों के लिए बनाए गए है कॉपरेटिव सोसायटियों के लिए कोई नियम नही है।

Yogesh Porwal
Author: Yogesh Porwal

वर्ष 2012 से पत्रकारिता के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय है। राष्ट्रीय समाचार पत्र हमवतन, भोपाल मेट्रो न्यूज, पद्मिनी टाइम्स में जिला संवाददाता, ब्यूरो चीफ व वर्ष 2015 से मन्दसौर से प्रकाशित दशपुर दिशा समाचार पत्र के बतौर सम्पादक कार्यरत, एवं मध्यप्रदेश शासन द्वारा जिला स्तरीय अधिमान्य पत्रकार है। पोरवाल, खोजी पत्रकारिता के लिए चर्चित है तथा खोजी पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित भी किए जा चुके है। योगेश पोरवाल ने इग्नू विश्वविद्यालय दिल्ली एवं स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन, न्यू मीडिया में पीजी डिप्लोमा और मास्टर डिग्री प्राप्त की, इसके अलावा विक्रम विश्वविद्यालय से एलएलबी, एलएलएम और वर्धमान महावीर ओपन विश्वविद्यालय से सायबर कानून में अध्ययन किया है।

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