टकरावद (पंकज जैन)। जिले के नारायणगढ़ थाना क्षेत्र में साइबर ठगी का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। चंद्रपुरा गांव में कई युवा थोड़े से लालच में पड़कर साइबर अपराधियों के जाल में फंस गए। ठगों ने बंधन बैंक में फर्जी खाते खुलवाकर इन युवाओं के खातों का दुरुपयोग किया, जिसमें बिना उनकी जानकारी के लाखों रुपये के ट्रांजेक्शन किए गए। इस मामले में कुछ युवाओं को नोएडा साइबर पुलिस से नोटिस मिल चुके हैं, जबकि कुछ न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं।
कैसे फंसे युवा
साइबर ठगों ने चंद्रपुरा के युवाओं को 2,000 रुपये का लालच देकर अपने जाल में फंसाया। ठगों ने दावा किया कि गांव में तालाब खुदवाने के लिए सरकारी योजना के तहत काम होगा और प्रत्येक युवा को प्रति माह 15,000 रुपये का भुगतान किया जाएगा। इसके लिए युवाओं से बंधन बैंक में खाते खुलवाए गए। खाता खोलने के बाद ठगों ने इन युवाओं से उनके खाता नंबर, पासबुक और एटीएम कार्ड ले लिए। इसके बाद इन खातों का इस्तेमाल साइबर ठगी के लिए किया गया, जिसमें लाखों रुपये के अवैध ट्रांजेक्शन हुए।

स्थानीय लोगों के अनुसार, ठगों ने इन खातों को तथाकथित “म्यूल अकाउंट” के रूप में इस्तेमाल किया। म्यूल अकाउंट ऐसे बैंक खाते होते हैं, जिनका उपयोग साइबर अपराधी ठगी की रकम को एक खाते से दूसरे में ट्रांसफर करने और अपनी पहचान छिपाने के लिए करते हैं।
पीड़ित युवाओं की स्थिति
चंद्रपूरा के कुलदीप, गोविंद, बबलू, सूरज, बबलू दमामी, धरमपाल मेघवाल, विशाल मेघवाल, संजू सहित कई युवा इस ठगी के शिकार हुए हैं। इनमें से कुछ युवाओं को नोएडा साइबर पुलिस से नोटिस प्राप्त हुए हैं, जिसमें उनके खातों में संदिग्ध लेनदेन की जांच की जा रही है। कुछ युवा इस मामले में कानूनी पचड़े में फंस गए हैं और उन्हें न्यायालय के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। कुछ ने तो डर और शर्मिंदगी के कारण मथुरा (कृष्ण की जन्मस्थली) जाकर प्रायश्चित करने की कोशिश की।
साइबर ठगी का पैटर्न
यह मामला मध्यप्रदेश में साइबर ठगी के बढ़ते मामलों का हिस्सा है। हाल ही में ग्वालियर में भी बंधन बैंक के फर्जी खातों के जरिए साइबर ठगी का एक बड़ा मामला सामने आया था, जहां उज्जैन के नागदा में बैंक कर्मचारियों ने फर्जी खाते खोले थे। एक सब्जी विक्रेता के खाते में 10 लाख रुपये का ट्रांजेक्शन होने की बात सामने आई थी, जिसका उसे कोई अंदाजा नहीं था। इस तरह के मामले में ठग ग्रामीण और कम पढ़े-लिखे लोगों को निशाना बनाते हैं, उन्हें छोटे-मोटे लालच देकर उनके खातों का दुरुपयोग करते हैं।
पुलिस के अनुसार, ऐसे खातों में ठगी की रकम को देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रांसफर किया जाता है और फिर कैश में निकाल लिया जाता है, जिससे अपराधियों की पहचान मुश्किल हो जाती है।
पुलिस ने स्थानीय लोगों से अपील की है कि वे किसी भी अनजान व्यक्ति या कंपनी को अपने बैंक खाते की जानकारी न दें। पुलिस के अनुसार, जो लोग अपने खाते का गलत इस्तेमाल होने देते हैं, उन्हें भी भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 3(5) के तहत मुख्य अपराधी के समान दोषी माना जा सकता है।
साइबर ठगी से बचाव के लिए सलाह
– लालच से बचें: जल्दी पैसा कमाने के लालच में किसी को अपना बैंक खाता, पासबुक या एटीएम कार्ड न दें।
–जानकारी साझा न करें: बैंक खाते, ओटीपी, या डिजिटल वॉलेट की जानकारी किसी के साथ साझा न करें।
– संदिग्ध लेनदेन की सूचना दें: यदि आपके खाते में अज्ञात स्रोत से पैसा आता है, तुरंत बैंक और पुलिस को सूचित करें।
– जागरूकता: सरकारी योजनाओं के नाम पर ठगी करने वालों से सावधान रहें और किसी भी ऑफर की सत्यता जांचें।
चंद्रपुरा में साइबर ठगी का यह मामला ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और लालच के खतरनाक परिणामों को उजागर करता है। युवाओं को छोटे-मोटे लालच में फंसाकर उनके भविष्य को खतरे में डालने वाले इस संगठित अपराध ने स्थानीय समुदाय को झकझोर दिया है। पुलिस की जांच से उम्मीद है कि इस मामले के दोषियों को जल्द पकड़ा जाएगा और पीड़ितों को न्याय मिलेगा।
Author: Yogesh Porwal
वर्ष 2012 से पत्रकारिता के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय है। राष्ट्रीय समाचार पत्र हमवतन, भोपाल मेट्रो न्यूज, पद्मिनी टाइम्स में जिला संवाददाता, ब्यूरो चीफ व वर्ष 2015 से मन्दसौर से प्रकाशित दशपुर दिशा समाचार पत्र के बतौर सम्पादक कार्यरत, एवं मध्यप्रदेश शासन द्वारा जिला स्तरीय अधिमान्य पत्रकार है। पोरवाल, खोजी पत्रकारिता के लिए चर्चित है तथा खोजी पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित भी किए जा चुके है। योगेश पोरवाल ने इग्नू विश्वविद्यालय दिल्ली एवं स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन, न्यू मीडिया में पीजी डिप्लोमा और मास्टर डिग्री प्राप्त की, इसके अलावा विक्रम विश्वविद्यालय से एलएलबी, एलएलएम और वर्धमान महावीर ओपन विश्वविद्यालय से सायबर कानून में अध्ययन किया है।









