रतलाम। रतलाम जिला न्यायालय ने बिना डिग्री के इलाज करने वाले एक फर्जी डॉक्टर धीरज सिंह को दो वर्ष के कठोर कारावास और चार हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। यह मामला 11 वर्ष पुराना है, जब 17 नवंबर 2014 को तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. पुष्पेंद्र शर्मा की टीम ने फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ अभियान चलाया था।
छापेमारी में खुला फर्जीवाड़ा
अभियोजन के अनुसार, डॉ. पुष्पेंद्र शर्मा, जिला स्वास्थ्य अधिकारी गणराज गौड़ और अन्य डॉक्टरों की टीम ने सातरुंडा चौराहे पर एक बिना नाम के निजी क्लिनिक पर छापा मारा। जांच में पाया गया कि धीरज सिंह बिना किसी चिकित्सा डिग्री के मरीजों का इलाज कर रहा था। क्लिनिक में मुकेश और कृष्णा बाई नामक मरीजों को ड्रिप (बोटल) चढ़ाई जा रही थी। धीरज सिंह ने पूछताछ में बताया कि उसने केवल बीए द्वितीय वर्ष तक पढ़ाई की है और उसके पास चिकित्सा से संबंधित कोई डिग्री नहीं है। उसका नाम मध्य प्रदेश स्टेट मेडिकल रजिस्टर में भी दर्ज नहीं था।

एलोपैथिक दवाइयां जब्त, प्रकरण दर्ज
छापेमारी के दौरान क्लिनिक से कई एलोपैथिक दवाइयां जब्त की गईं। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि धीरज सिंह बिना किसी वैधानिक अधिकार के मरीजों का इलाज कर उनके जीवन को खतरे में डाल रहा था। इसके आधार पर उसके खिलाफ मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम, 1987 की धारा 24 और धोखाधड़ी के लिए भारतीय दंड संहिता (भादवि) की धारा 420 के तहत बिलपांक पुलिस थाने में प्रकरण दर्ज किया गया।
न्यायालय का फैसला
प्रकरण का विचारण जिला न्यायालय के प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी अरुण सिंह ठाकुर के समक्ष हुआ। विचारण के बाद न्यायाधीश ठाकुर ने धीरज सिंह को मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम की धारा 24 के तहत दोषी ठहराते हुए दो वर्ष के कठोर कारावास और चार हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना अदा न करने पर उसे एक माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। हालांकि, भादवि की धारा 420 के तहत उसे दोषमुक्त करार दिया गया।
फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ सख्ती की जरूरत
यह मामला फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो बिना योग्यता के मरीजों का इलाज कर उनकी जान जोखिम में डालते हैं। स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन द्वारा समय-समय पर चलाए जाने वाले ऐसे अभियान इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
Author: Dashpur Disha
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